गोरखपुर। नए शिक्षा सत्र में 16 दिन बीत चुके हैं लेकिन परिषदीय से लेकर माध्यमिक विद्यालयों में एक भी निशुल्क पुस्तकें अभी तक नहीं पहुंच सकी है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू है, परंतु शासन से लेकर शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी निशुल्क किताबें उपलब्ध कराने में कितने गंभीर हैं, किसी की समझ से परे है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शिक्षा का अधिकार अधिनियम सफल भी हो तो कैसे हो? शासन द्वारा इधर तीन-चार सालों से शिक्षा का नया सत्र अप्रैल से प्रारंभ किया गया। परंतु इसकी तैयारी सिफर रही है। कहने को तो सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत गांव से लेकर न्याय पंचायत व ब्लाक स्तर पर जागरूकता रैली पूरे जोर-शोर के साथ शुरू हुई। शत-प्रतिशत नामांकन पर जोर दिया गया। कावेट स्कूलों की चकाचौंध में वैसे ही परिषदीय विद्यालय बच्चों के नामाकन में जद्दोजहद कर रहे हैं, जैसेतैसे जिनका प्रवेश हो चुका है, उनके लिए पढ़ाई की कोई किताबें ही उपलब्ध नहीं है ।बताते चलें कि परिषदीय स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक बच्चों के अलावा मान्यता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों में निशुल्क पुस्तक वितरण की व्यवस्था है। नए सत्र का पहला महीना आधा गुजर चुका है, अभी किताबों का कुछ पता नहीं है। वैसे जो आसार दिखाई दे रहे हैं उसके चलते इस पूरे महीने शायद ही बच्चों को किताबें नसीब हो सके। विभागीय स्तर पर हिदायत दी गई है कि जब तक किताबें नहीं मिलती हैं, बच्चों को पुरानी ही पुस्तकें उपलब्ध कराकर उन्हें पढ़ाया जाए, परंतु छोटे-छोटे बच्चों की पुरानी किताबें जब सुरक्षित ही नहीं बचती है, तो फिर भला उसे किसी दूसरे बच्चे तक पहुंचाना कहां तक संभव है। मतलब हर जगह किताबों को लेकर अफरा-तफरी की स्थिति बनी हुई है। सोचनीय विषय यह है कि जब पुस्तकें हैं ही नहीं तो बच्चे आखिर कैसे शिक्षा ग्रहण करेंगे। यही वजह है कि इन दिनों अधिकांश बच्चों का विद्यालयों में आना और खेल कूदकर वापस घर लौट जाना मजबूरी में पार्ट बन गया है। अभी जनपद मुख्यालय पर ही पस्तकें उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। अध्यापकों से कहा गया है कि जैसे संभव हो बच्चों में पुरानी किताबों को उपलब्ध कराकर उनकी शिक्षण व्यवस्था बेहतर बनाई जाए। जैसे ही किताबें उपलब्ध होती हैं, उसे स्कूलों तक पहुंचाया जाएगा।
सरकारी प्राथमिक स्कूलों में बिना किताबों के हो रही पढ़ाई